सो बल कहा भयौ भगवान?
जिहिं बल मीन-रूप जल थाह्यौ, लियौ निगम हति असुर-परान।
जिहिं बल कमठ-पीठि पर गिरि-धरि, सजल सिंधु मथि कियौ बिमान।
जिहिं बल रूप बराह दसन पर, राखी पुहुमी पुहुप समान।
जिहिं बल हिरनकसिप-उर फारयौ, भए भगत कौं कृपानिधान।
जिहिं बल बलि बंधन करि पठयौ, बसुधा त्रैपद करी प्रमान।
जिहिं बल बिप्र तिलक दै थाप्यौ, रच्छा करी आप बिदमान।
जिहिं बल रावन के सिर काटे, कियौ बिभीषन नृपति निदान।
जिहिं बल जामवंत मद मेट्यौ, जिहिं बल भू-बिनति सुनी कान।
सूरदास अब धाम-देहरी चढ़ि न सकत प्रभु खरे अजान!।।127।।