चलत देखि जसुमति सुख पावै -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग धनाश्री



चलत देखि जसुमति सुख पावै।
ठुमुकि-ठुमुकि पग धरनी रेंगत, जननी देखि दिखावै।
देहरि लौं चलि जात, बहुरि फिरि-फिरि इतहीं कौं आवै।
गिरि-गिरि परत, बनत नहिं नाँधत सुर-मुनि सोच करावै।
कोटि ब्रह्मांड करत छिन भीतर, हरत बिलंब न लावै।
ताकौं लिए नंद की रानी, नाना खेल खिलावै।
तब जसुमति कर टेकि स्याम कौ, क्रम-क्रम करि उतरावै।
सूरदास प्रभु देखि-देखि, सुर-नर-मुनि-बु‍द्धि भुलावै।।126।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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