सुनौ कपि, कौसिल्या की बात -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग मारू


 
सुनौ कपि, कौसिल्या की बात।
इहिं पुर जनि आवहिं मम बत्सल, बिनु लछिमन लघु भ्रात।
छाँड़यौ राज-काज, माता-हित, तुव चरननि चित लाइ।
ताहि विमुख जीवनधिक रघुपति, कहियो कपि समुझाइ।
लछिमन सहित कुसल बैदेही, आनि राज पुर कीजै।
नातरु सूर सुमित्रा-सुत पर वारि अपुनपौ दाजै॥153॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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