सुनि सुनि बात सखी मुसुकानी।
अब हीं जाइ प्रगट करि दैहैं, कहा रहै यह बात छपानी।।
औरनि सौं दुराव जौ करती, तौ हम कहतीं भई सयानी।
दाई आगैं पेट दुरावति, वाकी बुद्धि आजु मैं जानी।।
हम जातहिं वह उधरि परैगी, दूध दूध, पानी सो पानी।
सूरदास अब करति चतुरई, हमहि दुरावति बातनि ठानि।।1723।।