अपनौ धेद तुम्हैं नहिं कैहै।
देखहु जाइ चरित तुम वाके जैसैं गाल बजैहै।।
बड़े गुरु की बुद्धि पढ़ी वह, काहू कौं न पत्यैहै।
एकौ बात मानिहै नाहीं, सबकी सौहैं खैहै।।
मैं नीकैं करि बूझि रही हौं, अब बूझैं रिस पैहै।
सुनहु सूर रस-छकी राधिका, बातनि बैर बढ़ैहै।।1724।।