सुनि सजनी मोसौं इक बात।
भाग बिना कछु नही पाइयै, तू काहैं पुनि पुनि पछितात।।
नैननि बहुत करी री सेवा, पल पल धरों पहर दिन रात।
मन बच क्रम दृढ़ताई जाकै, धन्य धन्य इनकी वै जात।।
कैसै मिले स्याम इनकी ढरि, जैसै सुत कौ हित कै मात।
'सूरदास' प्रभु-कृपा-सिंधु वै, सहज बड़े है त्रिभुवन तात।।2326।।