नैननि यह कुटेव पकरी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग धनाश्री


नैननि यह कुटेव पकरी।
लूटत स्याम रूप आपुनही, निसि दिन, पहर धरी।।
प्रथमहिं इन यह नोखै पाई, गए अतिहिं इतराइ।
मिले अचानक बड़भागी ह्वै, पूरन दरसन पाइ।।
लोभी बड़े, कृपन की इन सरि कृपा भई यह न्यारी।
'सूर' स्याम उनकौ भए भोरे, हमकौ निठुर मुरारी।।2325।।

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