सुनि मेघबर्त्त सजि सैन आए।
बल बर्त्त, वारि वर्त्त, पौन वर्त्त, बज्र, अग्नि बर्त्तक, जलद संग ल्याए।।
घहरात, गररात, दररात, हररात, तररात, भहरात माथ नाए।
कौन ऐसौ काज, बोले हम सुरराज, प्रलय के साज हमकौं बुलाए।।
वरष-दिन-संयोग, देत है मोहिं भोग, छुद्र-मति ब्रज-लोग, गर्व कीन्हौ।
मोहिं दयौ बिसराइ, पूज्यौ गिरिवर जाइ, परौ ब्रज धाइ आयसहिं दीन्हौ।।
कितिक ब्रज के लोग, रिस करी किहिं जोग, गिरि लियौ भोग फल तुर्त पैहै।
सूर सुरपति सुनौ, बयौ तैसौ लुनौ, प्रभु कहा गुनौ, गिरि संग बैहै।।853।।