सुनहु स्याम मेरी इक बात।
हरि प्यारी कै मुखतन चितवत, मन ही मनहि सिहात।।
कहा कहति वृषभानुनंदिनी, बूझत हैं मुसुकात।
कनकबरन सुंदरी राधिका, कटि कृस कोमल गात।।
तुम ही मेरी प्रान-जीवन-धन, अहो चंद तुव भ्रात।
सुनहु 'सूर' जो कहति रही तुम, कहौ न कहा लजात!।।1946।।