सुतादधि, पति सौ क्रोध भरी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली


सुतादधि, पति सौ क्रोध भरी।
अंबर लेत भई खिझ बालहिं, सारँग संग लरी।।
तब श्रीपति अति बुद्धि बिचरी मनि लै हाथ धरी।
वै अति चतुर नागी नागरि, लै मुख माँझ करी।।
चापत चरन सेस चलि आयौ, उदयाचलहिं डरी।
'सूरदास' स्वामी लीला डरि, अंकम लगि उबरी।।2623।।

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