गिरिधर नारि अबल अति कीन्ही।
सबल भुजा धरि अंकम भरि भरि, चापि कठिन कुच (उर पर) लीन्ही।।
कोक अनागत क्रीड़ा पर रुचि, दूर करत तनुसारी।
कमल करनि कुच गहत, लहत पुट, देखौ यह छबि न्यारी।।
बार बार ललचात साध करि, सकुचति पुनि पुनि बाला।
'सूर' स्याम यह काम करौ जनि, धनि धनि मदन गोपाला।।2622।।