सुकदेव कह्यो, सुनौ हो राव3 -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग बिलावल
च्यवन ऋषि की कथा


 
तासु बंस लियौ कृष्नऽवतार। असुर मारि, कियौ सुर-उद्धार।
कहिहौ कथा सो करि बिस्तार। पुरूरवा- कथा सुनौ चित धार।
पुरुरवा-गेह उरबसी आई। मित्रवरून के सापहि पाई।
नृपति देखि तिहिं मोहित भयौ। तिनि यह बचन नृपति सौ कह्यौ।
बिन रतिकाल नगन नहिं होवहु। अरु मम मैढ़नि कौ मति खोवहु।
तब लौं मैं तुम्हरौ सँग करौ। बचन-भंग भए तैं परिहरौ।
नृपति कह्मौ, तुम कह्यौ सो करिहौं। तुम्हरी आज्ञा मै अनुसरिहौं।
तासौं मिलि नृप बहु सुख माने। अष्ट पुत्र तासौ उतपाने।
सुरपुर तैं गंध्रब तब आए। उदबसि सौ यह बचन सुनाए।
अब तुम इंद्र लोक कौ चलौ। तुम बिन सुरपुर लगत न भलौ।
तिन्ह उरबसी कह्यौ या भाइ। बल करि सकौ नहीं लै जाइ।
मम चलिबे कौ यहै उपाव। छल करि मैढ़नि निसि लै जाव।
गंध्रब मैंढ़नि निसि लै धाए। सोवत नृप उरबसी जगाए।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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