सुकदेव कह्यौ, सुनौ हो राव2 -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग बिलावल
च्यवन ऋषि की कथा


 
ताकी नारि सुता-हित भाष्यौ। सुनि बसिष्ट अपने मन राख्यौ।
रिषि नृप कह्मौ, रानी पुत्री चही। मेरे मन मै सोई रही।
तातैं पुत्री उपजी आइ। करिहैं पुत्र ताहि हरिराइ।
हरि ता पुत्री कौ सुत करयौ। नाम सुद्युम्न ताहि रिषि धरयौ।
एक दिवस सो अखेटक गयौ। जाइ अंबिका -वन तिय भयौ।
बुध कै आस्रम सो पुनि आयौ। तासौ गंध्रव व्याह करायौ।
बहुरौ एक पुत्र तिन जायौ। नाम पुरूरवा ताहि धरायो।
पुनि सुद्युम्न बसिष्ठ सौ कह्मौ। अंवा-वन मै तिय ह्नै गयौ।
रिषि सिव सौ बहु बिनती करी। तब सिव यह बानी उच्चरी।
एक मास यह ह्वैहे नारि। दूजे माम पुरुष आकारि।
तब सुद्युम्न अपनै गृह आयौ। राज समाज माहिं सुख पायौ।
तीनि पुत्र ठिन और उपाए। इच्छिन राज करन सो पठाए।
दस सुत मनु के उपजै और। भयौ इक्ष्वाकु सबनि सिरमौर।
सूरजबंसी सो कहवाए। रामचंद्र ताही कुल आए।
सोमबंस पुरुरवा सौं भयौं। सकल देश नृप ताकौं दयौ।
 

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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