सरद समै हूँ स्याम न आए -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मारू


सरद समै हूँ स्याम न आए।
को जानै काहे तै सजनी, किहि बैरिनि बिरमाए।।
अमल अकास कास कुसुमित छिति, लच्छन स्वच्छ जनाए।
सर सरिता सागर जल उज्ज्वल, अति कुल कमल सुहाए।।
अहि मयंक, मकरंद कज अलि, दाहक गरल जिवाए।
प्रीतम रंग संग मिलि सुदरि, रचि सचि सीचि सिराए।।
सूनी सेज तुषार जमत चिर, विरह सिंधु उपजाए।
अब गइ आस ‘सूर’ मिलिबे को, भए ब्रजनाथ पराए।। 3343।।

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