अब यह बरषौ बीति गई।
जनि सोचहि, सुख मानि सयानी, भली रितु सरद भई।।
फुल्ल सरोज सरोवर सुंदर, नव विधि नलिनि नई।
उदित चारु चंद्रिका किरन, उर अंतर अमृत-मई।।
घटी घटा अभिमान मोह मद, तमिता तेज हई।
सरिता संजम स्वच्छ सलिल सब, फाटी काम कई।।
यहै सरद संदेस ‘सूर’, सुनि करुना कहि पठई।
यह सुनि सखी सयानी आई, हरिरति अवधि हई।। 3342।।