सबै सुख लै जु गए ब्रजनाथ।
बिलखि बदन चितवतिं मधुबन तन, हम न गईं उठि साथ।।
वह मूरति चित तै बिसरति नहि, देखि साँवरे गात।
मदन गोपाल ठगौरी मेली, कहत न आवै बात।।
नंदनँदन जु विदेस गवन कियौ, वैसी मीजति हाथ।
'सूरदास' प्रभु तुम्हरै बिछुरे, हम सब भई अनाथ।। 3408।।