सबै सुख लै जु गए ब्रजनाथ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सोरठ


  
सबै सुख लै जु गए ब्रजनाथ।
बिलखि बदन चितवतिं मधुबन तन, हम न गईं उठि साथ।।
वह मूरति चित तै बिसरति नहि, देखि साँवरे गात।
मदन गोपाल ठगौरी मेली, कहत न आवै बात।।
नंदनँदन जु विदेस गवन कियौ, वैसी मीजति हाथ।
'सूरदास' प्रभु तुम्हरै बिछुरे, हम सब भई अनाथ।। 3408।।

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