लालन प्रगट भए गुन आजु -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग काफी


लालन प्रगट भए गुन आजु, त्रिभंगी लालन ऐसे हौ।
रोकत घाट बाट गृह बनहूँ निबहति नहिं कोउ नारि।।
भली नहीं यह करत साँवरे, हम दैहैं अब गारि।
फागुन मैं तौ लखत न कोऊ, फबति अचगरी भारि।।
दिन दस गए, दिना दस औरौ, लेहु सासु सब सारि।
पिचकारी मोकौ जनि छिरकौ, झरकि उठी मुसुकाइ।।
सासु ननद मोकौ घर बैरिनि, तिनहि कहौ कह जाइ।
हा हा करि, कही नंद दुहाई, कहा परी यह बानि।।
तासौ भिरहु तुमहिं जो लायक, इहिं हेरनि मुसुकानि।
अनलायक हम हैं, की तुम हौ, कहौ न बात उघारि।।
तुमहूँ नवल, नवल हमहूँ हैं, बड़ी चतुर हौ ग्वारि।
यह कहि स्याम हँसे, बाला हँसी, मनही मन दोउ जानि।
'सूरदास' प्रभु गुननि भरे हौ, भरन देहु अब पानि।।2883।।

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