लागे रुक्म गुहार संग -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग जैतश्री
रुक्मिणी विवाह की दूसरी लीला



लागे रुक्म गुहार संग सिसुपाल न छोडै ।
छाँडै बान विशाल जुद्ध ऐसौ को ओड़े ।।

चक्र धरे हरि आवही सुनि असुरनि जिय गाज ।
टेरि कह्यौ सिसुपाल सौ, कीजै कंकन लाज ।।

सकल सैन संहारि रुक्म हलधर गहि लीन्हौ ।
आगै इहि सौ काम रूक्मिनी सौ प्रन कीन्हौ ।।

सात सिखा सिर राखि कै तब बूझी कुसलात ।
कुंडिनपुर कौ काज सँवारयौ, भूषनि कौ यह ख्यात ।।

नगर बधाई बजी नाथ बहुतै सुख मान्यौ ।
पूरन कीन्हौ नेह रुक्म तै सत्यहि जान्यौ ।।

कंकन छोरयौ द्वारिका बाज्यौ अनँद निसान ।
भुक्ति मुक्ति न्यौछावरी पाई ‘सूर’ सुजान ।। 4188।।

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