ललिता मुख सुनि सुनि बै बानी। मैं ऐसी जिय मैं यह आनी।।
और नहीं कोउ ब्रज मो सरि की। हौ राधा आधा अँग हरि की।।
अपनै ही बस पिय कौ करिहौ। कहूँ जात देखौ तब लरिहौ।।
घर घर सबै गई ब्रज नारी। इहि अंतर आए गिरिधारी।।
हरि अंतरजामी अबिनासी। जानि राधिका गर्व उदासी।।
'सूर' स्याम राधा तन हेरयौ। नागरि देखतही मुख फेरयौ।।2072।।