वरज्यौ नहिं मानत तुम नैकहुँ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


वरज्यौ नहिं मानत तुम नैकहुँ उझकत फिरत कान्ह घर ही घर।
मिस ही मिस देखत जु फिरत हौ, जुवतिनि बदन कहौ काकै बर?
कोउ अपनै घर जैसै तैसै काम काज टे आवत दर दर।
'सूरदास' प्रभु देत अचगरी डोलत नैकु नही जिय मै डर।।2073।।

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