रे सेठ बिन गोविंद सुख नाहीं -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग धनाश्री



            

रे सेठ, बिन गोविंद सुख नाहीं।
तेरौ दु:ख दूरि करिबे कौं रिधि-सिधि फिरि-फिरि जाँहीं।
सिव, बिरंचि सनकादिक मुनिजन इनकी गति अवगाहीं।
जगत-पिता जगदीस-सरन बिनु, सुख तीनौं पुर नाहीं।
और सकल मैं देखे ढूढे, बादर की सी छाँहीं।
सूरदास भगवंत भजन बिनु, दुख कबहूँ नहीं जाहीं।।।323।।
 

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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