राधे तेरौ बदन बिराजत नीकौ।
जब तू इत-उत बंक बिलोकति, होत निसा-पति फीकौ।।
भृकुटी धनुष, नैन सर, साँधे, सिर केसरि कौ टीकौ।
मनु घूँघट-पट मैं दुरि बैठ्यौ, पारधि रति-पतिही कौ।।
गति मैमंत नाग ज्यौं नागरि, करे कहति हौं लीकौ।
सूरदास-प्रभु बिबिध भाँति करि, मन रिझयौ हरि पो कौ।।1702।।