राजति राधे अलक भली री।
मुकता माँग, तिलक पन्नगि सिर, सुत समेत भष लेन चली री।।
कुमकुम-आड़ स्रवत स्रम-जल मिलि, मधु पीवत छबि छीट चली री।
चारु उरज ऊपर यौं राजति, अरुझे अति-कुल कमल-कली री।।
रोमावलि त्रिबली उर परसति, बाँस चढ़े नट काम बली री।
प्रीति सुहाग भुजा सिर मंडन, जघन सघन विपरित कदली री।।
जावक चरन, पंच-सर-सायक, समर जीति लै सरन चली री।
सूरदास प्रभु कौं सुख दीन्हौ, नख-सिख राधे सुखनि फली री।।1703।।