राधा तै हरि कै रँग राँची।
तो तै चतुर और नहिं कोऊ, बात कहौ मैं साँची।।
तै उनकौ मन नही चुरायौ, ऐसी है तू काँची।
हरि तैरौ मन अबहि चुरायौ, प्रथम तुही है नाँची।।
तुम अरु स्याम एक हौ दोऊ, बाकी नाही बाँची।
'सूर' स्याम तेरै बस राधा, कहति लीक मैं खाँची।।1897।।