माई कृष्णनाम जब तै स्रवन सुन्यौ है री -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग आसावरी


माई कृष्णनाम जब तै स्रवन सुन्यौ है री, तब तै भूली री भौन बावरी सी भई री।
भरि भरि आवै नैन, चित न रहत चैन, बैन नहि सूधौ दसा औरहि ह्वै गई री।।
कौन माता, कौन पिता, कौन भैनी, कौन भ्राता, कौन ज्ञान कौन ध्यान, मनमथ हई री।
'सूर' स्याम जब तै परे री मेरी डीठि, वाम, काम, धाम, लोकलाजु कुलकानि नई री।।1896।।

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