राधा तू अतिही है भोरी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गूजरी


राधा तू अतिही है भोरी।
झूठहि लोग उठावत घर घर, हम जान्यौ अब तौ री।।
कट लगाइ लई रिस छाँड़ौ, चूक परी हम ओरी।
तुम निर्मल गंगा जलहु तै, दुरति नहीं वह चोरी।।
घर जैहौ कै जमुना जैहौ, हम आवै सँग गोरी।
'सूरदास' प्रभु प्यारी राधा, चतुर दिननि की थोरी।।1960।।

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