तुम मेरी बेसरि कौं धाई।
सकुचि गई सुनि सुनि वह बानी, तरुनी भलै लजाई।।
यह तौ बात लगति कछु साँची, हम पर न्याइ रिसाई।
टेरत कान्ह गए ग्वालनि कौ स्रवन परी धुनि आई।।
बेसरि नाउँ लेत सरमानी तब राधा भहूरानी।
'सूरदास' ब्रजनारि मनहिं मन यह गुनि गुनि पछितानी।।1959।।