यहै बहुत जो बात चलावै -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

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यहै बहुत जो बात चलावै।
राजकाज मैं स्याम मनोहर, कृपा करै तौ निकट बुलावै।
जादवपति बसुद्यौ के वै सुत, नदनँदन अब कतहिं कहावै।।
कुबिजा दासी रस बस करहै अब कैसै ब्रज बनिता भावै।
अब सुनियै बनमाल लाल गर, मोरमुकुट नहिं देखि सुहावै।।
मुक्तामाल मनोहर कुंडल, बनी काति सोभहि जनावै।
का कर बेनु विषान गहे अब, सुनियत मुरली देखि लगावै।।
भए छत्रपति त्रिभुवन नायक, अब वै सुरभी कौन चरावै।
चूक परी सेवा न करी कछु, सुमिरत दुख गोपी जन पावै।
'सूरदास' स्वामी सुखसागर, जाकौ जस ब्रह्मादिक गावै।। 150 ।।

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