मोहन यह सुख कहां धरयौ।
जो सुख-रासि रैनि उपजायौ, त्रिभुवन-मनहिं हरयौ।।
मुरली-सब्द सुनत ऐसौ को, जो ब्रत तैं न टरयौ।
बचे न कोउ मोहित सब कीन्हे, प्रेम उदोत करयौ।।
उलटि काम तनु काम प्रकास्यौ, अद्भुत रुप धरयौ।
सूरदास सिव-नारद-सारद कहत, न कह्यौ परयौ।।1141।।