मोसौं कहा दुरावति नारि।
नैन सैन दै चितहि चुरावति, यहै मंत्र टोना सिर डारि।।
भौहँ धनुष अंजन गुन ऐंचति, बान कटाच्छनि डारति मारि।
तरिवन-स्रवन फाँसि गर डारति, कैसेहुं नाहिं सकत निरवारि।।
पीन उरज मुख-नैन चखावति, यह विष-मोदक जात न झारि।
धालति छुरी प्रेम की बानी, सूरदास को सकै सम्हारि।।1585।।