मुरली सुनत देह गति भूलीं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग टोड़ी


मुरली सुनत देह-गति भूलीं। गोपी प्रेम हिंडोरैं झूलीं।।
कबहुँ चक्रित होहिं सयानी। स्वेद चलै द्रवि जैसैं पानी।।
धीरज धरि इक इकहिं सुनावहि। इक कहि कै आपुहिं बिसरावहि।।
कबहुँ सुधि कबहुँ सुधि ना‍हीं। कबहुँ मुरलीनाद समाहीं।।
कबहुँ तरुनी सब मिलि बौलें। कबहूँ रहैं धीर नहिं डोलैं।।
कबहूँ चलैं, कबहुँ फिरि आवैं। कबहुँ लाज तजि लाज लजावैं।।
मुरली स्याम-सुहागिनी भारी। सूरदास-प्रभु की बलहारी।।1219।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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