अधरि धरि मुरली स्याम बजावत।
सारंग, गौड़ी, नटनारायन, गौरी सूरहिं सुनावत।।
आपु भए रस-बस ताहीं कैं, औरनि बस करवावत।
ऐसौ की त्रिभुवन जल-थल मैं, जो सिर नहीं धुनावत।।
सुभग मुकुट कुंडल-मनि स्रवननि, देखत नारिनि भावत।
सूरदास प्रभु गिरिधर नागर, मुरलीधरन कहावत।।1220।।