अधरि धरि मुरली स्याम बजावत -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिहागरौ


अधरि धरि मुरली स्याम बजावत।
सारंग, गौड़ी, नटनारायन, गौरी सूरहिं सुनावत।।
आपु भए रस-बस ताहीं कैं, औरनि बस करवावत।
ऐसौ की त्रिभुवन जल-थल मैं, जो सिर नहीं धुनावत।।
सुभग मुकुट कुंडल-मनि स्रवननि, देखत नारिनि भावत।
सूरदास प्रभु गिरिधर नागर, मुरलीधरन कहावत।।1220।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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