मावौ जू सो अपराधी हौ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग सारंग




मावौ जू, सो अपराधी हौ।
जनम पाइ कछु भलो न कीन्‍हौ, कहौ सु क्‍यौं निबहो।
सब सौ बात कहत जमपुर की गज-पिपील का लौं।
पाप-पुन्‍य कौ फल दुख-सुख है, भोग करौ जोइ गौं।
मौकौं पंथ बतायौ सोई नरक कि सरग लहो।
काकै बल हौ तरौं गुसाई कछु न भ्‍क्ति मो मौं।
हँसि बोलौ जगदीस जगत-पति बात तुम्‍हारी यौं।
करुना-सिंधु कृपाल, कृपा बिनु काकी सरन तकौ।
बात सुने तै बहुत सौगे, चरन-कमल को सौ।
मेरी देह छुटत जम पठए, जितक दूत घर मो।
लै लै ते हथियार आपने सान घराए त्‍यौं।
जिनके दारून दरस देखि कै पतित करत म्‍यौं म्‍यौं।
दाँत चबात चले जमपुर तै धाम हमारे कौं।
ढूँढि फिरे घर कोउ न बतायौ, स्‍वपच कोरिया लौं।
रिस भरि गए परम किंकर तब, पकरयौ छुटि न सकौं।
लै लै फिरे नगर मैं घर घर, जहाँ मृतक हो हौं।
ता रिस मैं मोहि बहुतक मारयौ, कहँ लगि बरनि सकौं।
हाय हाय मैं परयौ पुकारौं, राम-नाम न कहौं।
ताल पखावज चले बजावत, समधी सोभा कौं।
सूरदास की भली बनी है, गजी गई अरु पौं।।151।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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