मानौ माई घन घन अंतर दामिनि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार


मानौ माई घन घन अंतर दामिनि।
घन दामिनि दामिनी घन अंतर, सोभित हरि-ब्रज भामिनि।।
जमुन पुलिन मल्लिका मनोहर, सरद-सुहाई-जामिनि।
सुन्दर ससि गुन रुप-राग-निधि, अंग-अंग अभिरामिनि।।
रच्यौ रास मिली रसिक राइ सौं, मुदित भईं गुन ग्रामिनि।
रुप-निधान स्याीम सुंदर घन, आनंद मन बिस्रामिनि।।
खंजन-मीन-मयूर-हंस-पिक, भाइ-भेद गज-गामिनि।
को गति गनै सूर मोहन सँग, काम विमोह्यौ कामिनि।।1048।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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