मानि मनायौ राधा प्यारी 15 -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार
राधा-माधव-मिलन


कर जोरे बिनती करै मोहन, कहौ पाँइ सिर नाऊँ।
तेरी सौ वृषभानुनंदिनी, अनुदिन तुव गुन गाऊ।।
हौ सेवक निज प्रानप्रिया कौ, कहौ तौ पत्र लिखाऊँ।
अब जनि मान करौ तुम मोसौ, यहै मौज करि पाऊँ।।
हँसि करि उठि प्यारी उर लागी, मान मैं न दुख पायौ?
तुम मन दियौ आन बनिता तौ, मै मन मान लगायौ।।
लै बलाइ, उर लाइ अंक भरि, पछिलौ दुख बिसरायौ।
स्याम मान है प्रेमकसौटी, प्रेमहिं मान सहायौ।।
छूटे बद, छुटी अलकावलि, मरगजे तन के बागे।
अंजन अधर, भाल जावक रँग, पीक कपोलनि पागे।।
बिनु गुन माल, पीठि गडे कंकन उपटि परे, उर लागे।
रसिक राधिका के सुख कौ सुख, विलसे स्याम सभागे।।
नवल गुपाल, नवेली राधा, नए नेह बस कीने।
प्राननाथ सौ प्रानपियारी, प्रान पलटि से लीने।।
बिबिध बिलास-कला-रस-की विधि, उभय अंग परबीने।
अति हित मानि, मान तजि मानिनि, मनमोहन सुख दीने।।
राधा-कृष्ण-केलि-कौतूहल, स्रवन सुनै, जौ गावै।
तिनकै सदा समीप स्याम, नितही आनंद बढ़ावै।।
कबहुँ न जाहिं जठर पातक, जिनकौ यह लीला भावै।
जीवन मुक्त 'सूर' सो जग मैं, अंत परम पद पावै।।2826।।

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