राधिका बस्य करि स्याम पाए।
बिरह गयौ दूरि, जिय हरष हरि कै भयौ, सहस मुख निगम जिहि नेति गायौ।।
मान तजि मानिनी मैन कौ बल हरयौ, करत तनु कत जो त्रास भारी।
कोकविद्या निपुन, स्याम स्यामा, बिपुल, कुंज-गृह-द्वार ठाढ़े मुरारी।।
भक्त-हित-हेत अवतारि लीला करत, रहत प्रभु तहाँ निजु ध्यान जाकै।
प्रगट प्रभु 'सूर' ब्रजनारि कै हित बँधे, देत मन-काम-फल संग ताकै।।2827।।