माधौ जू सुनियै ब्रज व्यवहार -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


माधौ जू सुनियै ब्रज व्यवहार।
मेरौ कह्यौ पवन कौ भुस भयौ, गावत नंदकुमार।।
एक ग्वाल गोसुत ह्वै रेगत, एक लकुट कर लेत।
एक मंडली करि बैठारत, छाक बाँट इक देत।।
एक ग्वाल नटवर बपु लीला, एक कर्म गुन गावत।
बहुत भाँति करि मैं समुझायौ, एक न उर मैं आवत।।
निसि बासर येही ढंग सब ब्रज, दिन दिन नव तन प्रीति।
‘सूर’ सकल फीकौ लागत है, देखत वह रस रीति।।4145।।

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