माधौ जू जोग कौ बोध बह्यौ।
स्याम सुमुख बिधु बचन सुधा रस, सो पुनि कछु न कह्यौ।।
नव नव भाव तरंग महोदधि, सखि लोचन उमह्यौ।
तुम जो कह्यौ ज्ञान कौ मारग़, पानी ह्वै सु बह्यौ।।
सकल सिंगार हार रस सरबस, ब्रज नवनीत लह्यौ।
छूँछे भाँड़े परयौ न पावै, लिखि तुम दियौ मह्यौ।।
मोहि आचरज एक पै लागत, तुम पै जात सह्यौ।
‘सूर’ स्याम सुनि सखा सयानौ, लै भुज बीच गह्यौ।।4131।।