कोऊ सुनत न बात हमारी।
मानैं कहा जोग जादवपति, प्रगट प्रेम ब्रजनारी।।
कोउ कहतिं हरि गए कुंज वन, सैन धाम वै देत।
कोऊ कहतिं इंद्र बरषा तकि, गिरि गोवर्धन लेत।।
कोऊ कहतिं नाग काली सुनि, हरि गए जमुना तीर।
कोऊ कहतिं अघासुर मारन, गए संग बलवीर।।
कोऊ कहतिं ग्वालबालनि सँग, खेलत बनहिं लुकाने।
‘सूर’ सुमिरि गुन नाथ तुम्हारे, कोऊ कह्यौ न माने।।4132।।