मधुप रावरी यह पहिचानि।
वास रस लै अनत बैठत, पुहुप की तजि कानि।।
वाटिका बहु बिपिन जाकै, एक वै कुम्हिलानि।
तहाँ अगनित पुहुप फूले, कौन ताकै हानि।।
काम पावक जरत छाती, लौन लायौ आनि।
जोग पाती हाथ दीन्ही, विष लगायौ सानि।।
सीस की मनि हरी जिनकी, कौन तिनकी बानि।
निठुर ह्वै तुम ‘सूर’ के प्रभु, ब्रज तज्यौ यह जानि।।3983।।