तो कहै हरि सौ बात हमारी।
यह तौ हम तब ते जिय जानी, जब तै भए मधुप अधिकारी।।
एक प्रकृति एकै कैतव गति, तिहि गुन ऐसी नहिं जिय भावै।
प्रगटे नित नव कज मनोहर, ब्रज की सरक करन कित आवै।।
जो नित नव बेली रस चाखत, अरु जाकी सब तै गति न्यारी।
ता अलि की संगति बसि मधुपुरी, 'सूरदास' प्रभु सुरति बिसारी।।3984।।