मधुकर भए देवैया जी के।
पूछति पा लागौ सब बिरहिनि, नदकुँवर अति नीके।।
कहि धी सकर्पन की बातै, बोलौ बचन अमी के।।
कहु कैसे बसुदेव देवकी, बरत दिवला घी के।
कस मारि मथि मल्ल कौन बिधि, दाता उपकारी के।
उग्रसेन कौ नगर आनि कै, राज काज करि टीके।।
कोटि बरष सुख राज करै वै, व्रज जन दिन दिन फीके।
हाँसी नही ‘सूर’ साँची कहि, समाचार कुबरी के।। 185 ।।