मधुकर कहा बोलत साखि -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

भ्रमर-गीत

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मधुकर कहा बोलत साखि।
जोग बैन निवारि अलि अति सरस हरि रस भापि।।
उभय तन कालिमा, तू सब अटपटी धरि राखि।
कहे सब्द सु बास कहा नहिं अतहि अमत चाखि।।
सोभि है का कुभ खडित, दियौ कानौ लाखि।
सिधि करौ तुम ‘सूर’ प्रभु भृत इन सँदेसनि काखि।। 184 ।।

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