मधुकर नाहिंन काज सँदेसौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार


मधुकर नाहिंन काज सँदेसौ।
इहिं ब्रज कौनैं जोग लिख्यौ है, कोटि जतन उपदेसौ।।
रवि के उदय मिलन चकई कौ, ससि कै समै अँदेसौ।
चातक क्यौ वन बसत बापुरौ, बधिकहिं काज बधे सौ।।
नगर आहि नागर बिनु सूनौ, कौन जु काज बसे सौ।
‘सूर’ सुभाव मिटै क्यौ कारै, फनिकहि काज डसे सौ।।3996।।

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