मधुकर जो हरि कह्यौ सु कहियै।
तब हम अब इनही की दासी, मौन गहे क्यौ रहियै।।
जो तुम जोग सुखावन आए, निरगुन क्यौ करि गहियै।
जो कछु लिख्यौ सोइ माथे पर, आनि परै सब सहियै।।
सुंदर रूप लाल गिरिधर कौ, बिनु देखे क्यौ रहियै।
'सूरदास' प्रभु समुझि एक रस, अब कैसै निरबहियै।।3501।।