ब्रज घरघर सब होति बधाइ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली


  
ब्रज घरघर सब होति बधाइ।
कंचन कलस दूब दधि रोचन लै वृंदावन आइ।।
मिलि ब्रजनारि तिलक सिर कीनौ, करि प्रदच्छिना तासु।
पूछत कुसल नारिनर हरषत, आए सब ब्रजवास।।
सकलकात तन धक धकात उर, अकबकात सब ठाढे।
‘सूर’ उपँगसुत बोलत नाही, अति हिरदै ह्वै गाढ़े।।3479।।

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