आजु ब्रज कोऊ आयौ है।
किधौ बहुरि अकूर कूर ह्वै, जियत जानि उठि धायौ है।।
मैं देख्यौ ताकौ रथ ठाढ़ौ, तुमकौ सोध बतायौ है।
कै करि कृपा दुखित दीननि पै, हरि संदेस पठायौ है।।
चली मिलि सिमिट सखी पूछन कौ, ऊधौ दरस दिखायौ है।
तब पहिचानि जानि प्रभु को भूत, करनि जोरि सिर नायौ है।।
हरि है कुसल कुसल हो तुमहूँ, कुसल लोग सब भायौ है।
है वह नगर कुसल ‘सूरज’ प्रभु, करि सुदृष्टि जहँ छायौ है।। 3480।।