बिथा माई कौन सौ कहियै।
हम तौ भई जज्ञ के पसु ज्यौ, केतिक दुख सहियै।।
कामिनि भामिनि निसि अरु बासर, कहूँ न सुख लहियै।
मन मैं बिथा मथति लागै यौ, उर अंतर दहियै।।
कबहुँक जिय ऐसी उपजति है, जाइ जमुन बहियै।
'सूरदास' प्रभु हरि नागर बिनु, काकी ह्वै रहियै।। 3293।।