बोलि सखी चातक पिक, मधुकर अरु मोर।
दिन ही दिन कौन सहै, बिरह बिथा घोर।।
सजि सुगध सुमन सेज, ससि सौ कहि जाइ।
जैसै यह बीर कर्म, देखै सब आइ।।
लाउ मलय मारुत अरु, रितु बसंत संग।
पूजौ सखि कमल बैन, सनमुख रति रंग।।
नलिनीदल दूरि करै, मगमद कौ पंक।
अब जनि तन राखि लेऊँ, मनसिज सर संक।।
'सूरदास' प्रभु कृपालु, कोमल चित गात।
ताही छन प्रगट भए, सुनत प्रिया बात।। 3294।।