बार-बार जसुमति सुत बोधति -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग कान्हरौ



बार-बार जसुमति सुत बोधति, आउ चंद तोहिं लाल बुलावै ।
मधु-मेवा-पकवान-मिठाई, आपुन खैहै, तोहिं खवावै ।
हाथहिं पर तोहिं लीन्हे खेलै, नैंकु नहीं धरनी बैठावै ।
जल-बासन कर लै जु उठावति, याही मैं तू तन धरि आवै ।
जलपुट आनि घरनि पर राख्यौ, गहि आन्यौ वह चंद दिखावै ।
सूरदास प्रभु हँसि मुसक्याने, बार-बार दोऊ कर नावै।।191।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः